Sunday, May 18, 2025

गौरैया की चहचहाहट को बचाने की जरूरत

तोप सिंह, युवा मीडिया

 बांदा(ब्यूरो)। करतल 20 मार्च को, हर साल की तरह, विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन नन्ही और प्यारी गौरैया के संरक्षण के लिए समर्पित है। एक समय था जब गौरैया घरों और आंगन में फुदकती हुई चहचहाती रहती थी, लेकिन अब यह पक्षी तेजी से लुप्त हो रहा है। लगभग डेढ़-दो दशकों पहले तक यह पक्षी हमारे आस-पास बहुलता से पाया जाता था, लेकिन अब इसकी संख्या में लगातार गिरावट आ रही है।
वर्ष 2010 में,गौरैया की घटती संख्या को देखकर इस पक्षी के संरक्षण के लिए विश्व गौरैया दिवस की शुरुआत की गई थी। गौरैया का कम होना न केवल इस पक्षी के लिए, बल्कि हमारे पर्यावरण के लिए भी चिंता का विषय है। यह पक्षी प्राकृतिक संतुलन का अहम हिस्सा है, और उसकी घटती संख्या से पर्यावरण में बिगाड़ के संकेत मिलते हैं।
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वन क्षेत्र बांदा में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है। वन दरोगा धर्म नारायण द्विवेदी के अनुसार, इस वर्ष भी जिला मुख्यालय बांदा में गौरैया दिवस का आयोजन किया जाएगा। गौरैया का कम होना पर्यावरणीय बदलावों की ओर इशारा करता है। कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, प्रदूषण, और प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना इन समस्याओं में मुख्य कारण हैं। पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, और उनके स्थान पर बहुमंजिली इमारतें, मोबाइल टावर और बिजली के खंभे उग आए हैं। इन बदलावों से न केवल गौरैया, बल्कि कई अन्य पक्षियों और जानवरों की जिंदगी भी संकट में है।

इसके अलावा, मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का भी गौरैया की आबादी पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। ऐसे में, हमें इन नन्हे परिंदों के लिए एक उपयुक्त वातावरण बनाने की जरूरत है, ताकि उनकी चहचहाहट हमारे घरों में हमेशा सुनाई देती रहे। गौरैया न केवल हमारे पर्यावरण का हिस्सा है, बल्कि वह प्रकृति के असली संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। इन परिंदों का अप्रत्यक्ष योगदान बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे कीटों की संख्या को नियंत्रित करते हैं और वृक्षों के बीजों को फैलाने का कार्य करते हैं। यही कारण है कि हमें गौरैया जैसे पक्षियों के संरक्षण के लिए और अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। हमें एकजुट होकर शपथ लेनी होगी कि इस खूबसूरत पक्षी को बचाने के लिए हम कदम उठाएंगे। ध्यान रखें, गौरैया कहीं नहीं गई है, वह बस कुछ समय के लिए रूठ गई है। हमें उसे मनाना होगा, थोड़ा दाना-पानी देना होगा, और उसे फिर से हमारे घरों और आंगन में लाने के लिए प्रयास करना होगा।

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