लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद जेल अफसरों ने अब जमानत मिलने पर बंदियों को जल्दी ही रिहा करने को लेकर कवायद शुरू कर दी है। इसी कड़ी में डीजी जेल ने बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग में निर्देश दिए कि कोर्ट से जमानत का आदेश मिलते ही रिहाई से जुड़ी औपचारिकता 24 घंटे में पूरी कर ली जाए। इसके साथ बजट के आवंटन समेत कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की गई।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद वीडियो कांफ्रेंसिंग कर डीजी ने दिए निर्देश
डीजी जेल पीसी मीणा ने सभी डीआईजी जेल व जेल अधीक्षकों को निर्देश दिए कि रिहाई के मामलों को प्राथमिकता पर निपटाया जाए। कानूनी औपचारिकता पूरी करने में किसी तरह की ढिलाई न की जाए। उन्होंने निर्देश दिए कि जिन जेलों में स्थानान्तरण के बाद भी कर्मचारी टिके हुए है, उन्हें तुरन्त कार्यमुक्त कर दिया जाए। इसके अलावा उन्होंने रेंज के डीआईजी को निर्देश दिया कि सभी मामलों की लगातार निगरानी कराई जाए और हर सोमवार को उन्हें प्रगति से अवगत कराया जाए। गौरतबल है कि जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को 29 अप्रैल को जमानत दे दी थी। इसके बाद गाजियाबाद की जिला अदालत ने 27 मई को जेल अधीक्षक को एक रिहाई आदेश जारी करते हुए, मुचलका जमा करने पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। लेकिन जेल प्रशासन ने आरोपी को रिहा करने से इनकार कर दिया।
तकनीकी आधार पर सलाखों के पीछे रखने पर लगाई फटकार
वरिष्ठ अधिवक्ता और उत्तर प्रदेश की अपर महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि डीजी जेल ने मेरठ रेंज के उप महानिरीक्षक द्वारा मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
जेल अधिकारियों के आचरण पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह स्वतंत्रता का मामला है और वह जानना चाहेगा कि जमानत के बावजूद उस व्यक्ति को हिरासत में क्यों रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच रिपोर्ट को देखने के बाद हम तय करेंगे कि मुआवजे की राशि किसी जिम्मेदार अधिकारी से वसूली जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि आपने उसे मंगलवार को ही रिहा कर दिया। इससे पता चलता है कि आपने हमारे आदेश की अवहेलना की। आपने उसे केवल तकनीकी आधार पर सलाखों के पीछे रखा। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी को रिहा किए जाने से साफ पता चलता है कि आदेश स्पष्ट था और इसमें किसी भी तरह की स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी।
अवैध धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था आफताब
बता दें कि आफताब नाम के व्यक्ति के खिलाफ अवैध धर्मांतरण के आरोप में 2024 में मुकदमा दर्ज किया गया था। वह गाजियाबाद जेल में बंद था। 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने उक्त केस में उसे जमानत दी थी। ज़मानत का आदेश मिलने के बावजूद रिहा न किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को 5 लाख का अंतरिम मुआवजा आरोपी आफताब को दिए जाने का आदेश दिया है। कोर्ट के जमानत के आदेश के बाद रिहा न किए जाने की जांच गाजियाबाद जिला जज को सौंपी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से 27 जून तक आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट मांगी। सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को करेगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान डीजी जेल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए।
भगवान जाने कितने लोग यूपी की जेलों में सड़ रहे: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि भगवान जाने कितने लोग तकनीकी कारणों से आपकी जेलों में सड़ रहे हैं। अदालत ने जमानत आदेश में खामी बताकर आरोपी को रिहा नहीं करने के मामले की जांच का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और एन. कोटिस्वर सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने गाजियाबाद के मौजूदा जिला जज द्वारा मामले की न्यायिक जांच का आदेश दिया और कहा कि यह जांच इस बात पर केंद्रित होगी कि याचिकाकर्ता आफताब की रिहाई में देरी क्यों हुई और क्या कुछ भयावह चल रहा था? इसके साथ ही, अदालत ने जमानत मिलने के बाद भी आरोपी को जेल में रखने पर उत्तर प्रदेश सरकार से आरोपी को 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी आदेश दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) गरिमा प्रसाद ने शीर्ष अदालत को बताया कि आरोपी को 24 जून को रिहा कर दिया गया। साथ ही कहा कि रिहाई में देरी क्यों हुई, इसकी जांच डीआईजी मेरठ को सौंपी गई है ताकि पता चल सके कि रिहा किए जाने में इतनी देरी क्यों हुई? जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ‘भगवान ही जाने आपके (यूपी) जेलों में तकनीकी कारणों से ऐसे कितने लोग सड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम इस मामले को ऐसे नहीं जाने देंगे, राज्य में बहुत सारी जेलें हैं, इसकी जांच जरूरी है। मामले की न्यायिक जांच जरूरी शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यदि हमारे आदेश के बाद भी आप लोगों को सलाखों के पीछे रखते हैं तो हम क्या संदेश दे रहे हैं? पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देरी से रिहाई में अधिकारी की भूमिका मिली तो जुर्माने की भुगतान उक्त अधिकारी को ही करना होगा। साथ ही कहा कि मुआवजे की रकम हम 10 लाख रुपये भी कर सकते हैं।