Sunday, November 23, 2025

ट्रंप और ज़ोहरान ममदानी की व्हाइट हाउस में मुलाक़ात: विरोध से ‘मित्रता’ तक की कहानी

वॉशिंगटन। राजनीति की दुनिया में बयानबाज़ी और टकराव आम है, लेकिन कभी-कभी हालात अप्रत्याशित मोड़ ले लेते हैं। ऐसा ही कुछ अमेरिका में हुआ, जहां पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और न्यूयॉर्क के मेयर-इलेक्ट ज़ोहरान ममदानी के बीच व्हाइट हाउस में मुलाक़ात ने सभी को चौंका दिया। कभी एक-दूसरे पर आरोप लगाने वाले, सोशल मीडिया पर कड़े शब्दों का प्रयोग करने वाले दोनों नेता, मुलाक़ात में बिल्कुल अलग अंदाज़ में नजर आए। रिपोर्ट्स के मुताबिक मुलाक़ात सौहार्दपूर्ण, शांत और एक-दूसरे के विचार समझने वाली रही।

पहले हुई थी तीखी बयानबाज़ी : इस मुलाक़ात से पहले ममदानी ने कई मौकों पर ट्रंप को “100% कम्युनिस्ट लूनैटिक” और “टोटल नट जॉब” तक कहा था। वहीं ट्रंप ने भी ममदानी पर कटाक्ष किए थे और उनकी नीतियों को अव्यवहारिक बताया था। इसके बावजूद दोनों नेताओं का व्हाइट हाउस में इस तरह मिलकर बातचीत करना राजनीतिक हलकों में बड़ा संकेत माना जा रहा है।

बैठक में किन मुद्दों पर हुई चर्चा : सूत्रों के मुताबिक ट्रंप और ममदानी ने कई अहम विषयों पर चर्चा की, जिनमें शामिल हैं:


न्यूयॉर्क में महंगाई और घर की बढ़ती कीमतें
हाउसिंग क्राइसिस और सस्ती आवास योजना
आम अमेरिकियों की लागत बढ़ने से जुड़ी चुनौतियां
शहरों में सुरक्षा और सार्वजनिक सुविधाओं की स्थिति
मुलाक़ात के बाद दोनों तरफ से किसी बयान में टकराव नहीं दिखा, बल्कि बातचीत को सकारात्मक बताया गया।

क्यों महत्वपूर्ण है यह बैठक ? यह मुलाक़ात कई वजहों से चर्चा में है:
दोनों नेता पहले कट्टर विरोधी रहे हैं, अमेरिकी राजनीति में नए समीकरण बनाने का संकेत, न्यूयॉर्क शहर की नीतियों पर संभावित प्रभाव, ट्रंप के 2025 के राजनीतिक माहौल में बढ़ते सक्रियता संकेत
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुलाक़ात दोनों के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम हो सकती है।

भारत के लिए क्या मायने : भारत में ट्रंप और अमेरिकी राजनीति पर हमेशा नज़र रहती है। ऐसी मुलाक़ातें वैश्विक नीति, व्यापार, और कूटनीतिक संबंधों पर अप्रत्यक्ष असर डालती हैं।
खासकर : विदेश नीति में बदलाव, प्रवासी भारतीयों से जुड़े मुद्दों, अमेरिका में रहने वाले दक्षिण एशियाई समुदाय, इन सभी पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है।

ट्रंप और ममदानी की मुलाक़ात बताती है कि राजनीति में स्थायी विरोध नहीं होता। परिस्थितियां बदलते ही विचार और रणनीति दोनों बदल जाती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह “नई दोस्ती” किस दिशा में जाती है।

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