दिवाली मनाने के बाद दिल्ली मंगलवार की सुबह गाढ़ी जहरीली धुंध में लिपटी रही। लोगों ने अदालत के आदेशों की अवहेलना करते हुए देर रात तक पारंपरिक पटाखे फोड़े। सुप्रीम कोर्ट ने केवल सीमित समय के लिए “ग्रीन पटाखों” के इस्तेमाल की अनुमति दी थी, लेकिन नियमों का पालन नहीं हुआ और प्रदूषण का स्तर तेज़ी से बढ़ गया।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): 360 — “बहुत खराब” श्रेणी में
डब्ल्यूएचओ की सीमा: पीएम 2.5 का स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए, लेकिन दिल्ली में यह 24 गुना अधिक पाया गया।
मुख्य कारण:
दिवाली पर पटाखों का इस्तेमाल
वाहनों से निकलने वाला धुआं
आसपास के राज्यों में पराली जलाना
कम हवा की गति, जिससे प्रदूषक नीचे फँस जाते हैं
स्थानीय लोगों ने मंगलवार सुबह धुएं की गंध, मुंह में राख का स्वाद और बहुत कम दृश्यता की शिकायत की। कई इमारतें धुंध की चादर में पूरी तरह गायब हो गई।
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पृष्ठभूमि:
2020 से प्रतिबंध: दिवाली पर पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था।
2025 में ढील: सुप्रीम कोर्ट ने “ग्रीन पटाखे” (जो 20–30% कम प्रदूषण करते हैं) की अनुमति दी।
वास्तविकता: बाजारों में अब भी पारंपरिक पटाखे खुलेआम बिकते रहे और लोगों ने उनका ही उपयोग किया।
सरकारी कदम:
अधिकारियों ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का दूसरा चरण लागू किया — जिसमें डीज़ल जनरेटरों के उपयोग पर रोक और कोयला व लकड़ी जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया।
जन प्रतिक्रिया:
लोगों ने नाराज़गी जताई कि “अब बाहर निकलना भी मुश्किल है।” विशेषज्ञों को चिंता है कि पटाखों पर लगी पाबंदी में ढील से लोगों में प्रदूषण के खतरों को लेकर जागरूकता घट सकती है।
विश्लेषण
दिवाली के बाद दिल्ली का बार-बार प्रदूषित होना इस बात को दर्शाता है कि नीतियों और ज़मीनी अमल के बीच बड़ी खाई है।
“ग्रीन पटाखे” केवल थोड़ी राहत देते हैं — यह कोई स्थायी समाधान नहीं है।
जब तक सख़्त कार्रवाई और जन-सहयोग नहीं मिलेगा, हर सर्दी में दिल्ली की हवा ज़हरीली होती जाएगी।
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